नई दिल्ली। योग गुरु बाबा रामदेव और पतंजलि आयुर्वेद के एमडी बालकृष्ण को सुप्रीम कोर्ट उस समय बड़ा झटका लगा जब कोर्ट ने बिना शर्त माफी मांगने वाले उनके हलफनामे को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। इस मामले की अगली सुनवाई अब 16 अप्रैल को होगी। देश की सर्वोच्च अदालत ने इस मुद्दे पर निष्क्रियता के लिए राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण को भी कड़ी फटकार लगाई और कहा कि वह इसे हल्के में नहीं लेगी। वहीं, कानून का उल्लंघन करने के लिए पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ कार्रवाई करने में विफल रहने के लिए उत्तराखंड सरकार की भी आलोचना की है।
किसने किया था पतंजली पर केस?
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने अगस्त 2022 में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। पतंजलि ने एक वितज्ञापन दिया था, जिसमें कहा था कि एलोपैथी, फार्मा और मेडिकल उद्योग द्वारा गलतफहमियों से खुद को और देश को बचाएं। बाबा रामदेव ने एलोपैथी को ‘बेवकूफ और दिवालिया विज्ञान’ कहा था। उन्होंने दावा किया था कि एलोपैथिक दवा कोविड-19 से होने वाली मौतों के लिए जिम्मेदार है। आईएमए ने दावा किया कि पतंजलि के कारण भी लोग वैक्सीन लगवाने से हिचकिचा रहे थे।
पहली सुनवाई में क्या-क्या हुआ?
इस मामले पर पहली सुनवाई 21 नवंबर 2023 को हुई थी। सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति अमानुल्लाह ने मौखिक रूप से पतंजलि को यह दावा करने के लिए चेतावनी दी कि उनके उत्पाद बीमारियों को पूरी तरह से ठीक कर सकते हैं। इसके अलावा, प्रत्येक उत्पाद पर 1 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाने की धमकी दी थी। पतंजलि का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता साजन पूवैया ने कोर्ट से कहा था कि किसी भी कानून का उल्लंघन नहीं किया जाएगा।
फिर से क्यों खुला मामला?
15 जनवरी, 2024 को सुप्रीम कोर्ट को झूठे और भ्रामक विज्ञापनों के निरंतर प्रकाशन के संबंध में भारत के मुख्य न्यायाधीश और न्यायमूर्ति अमानुल्लाह को संबोधित एक गुमनाम पत्र मिला। इस पर ध्यान देते हुए 27 फरवरी को जस्टिस हेमा कोहली और अहसन्नुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने पतंजलि आयुर्वेद और इसके एमडी आचार्य बालकृष्ण को पहले के आदेशों का उल्लंघन करने और कंपनी के उत्पादों के साथ बीमारियों के इलाज के बारे में भ्रामक दावों का प्रचार जारी रखने के लिए अवमानना नोटिस जारी किया।
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