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मानव जीवन दुर्लभ है, इसका सदुपयोग करना होगा : श्री श्रमणतिलक विजय जी

 रायपुर । न्यू राजेंद्र नगर स्थित वर्धमान जैन मंदिर के मेघ-सीता भवन में चल रहे आत्मकल्याण वर्षावास 2024 की प्रवचन श्रृंखला में रविवार को परम पूज्य श्रमणतिलक विजय जी ने 'कीमती समय' के विषय में बताते हुए कहा कि अगर धूल से बने एक ईंट का चूर्ण बना दिया जाए और आपको कहा जाए कि उन्हीं कणों से एक बार फिर ईंट बनाकर दीजिए तो क्या यह संभव है? ऐसा बिल्कुल नहीं हो सकता है, ठीक वैसे ही आज जो आपको जो मानव जीवन मिला है वह दोबारा मिलना मुश्किल है। हमें आज जो मिला है, उसका हमें सदुपयोग कर अपनी जीवन का कल्याण करना है। 

एक प्रसंग की व्याख्या करते हुए मुनिश्री ने बताया कि एक व्यक्ति कम समझदारी वाला था, लोग उसकी हंसी उड़ाते रहते और हर व्यक्ति उसे कुछ न कुछ कहता ही रहता। किसी ने उसकी माता को यह सलाह दी कि उसे गोमा बंदरगाह भेज दीजिए, यह बातें उस व्यक्ति ने सुन ली और उसने अपने आप को अधिक समझदार सिद्ध करने अगली सुबह खुद ही गोम बंदरगाह के  लिए निकल गया। वह वहाँ पहुंच तो गया लेकिन उसे यह पता नहीं था कि वहां जाकर किससे मिलना है, कहां जाना है और करना क्या है ? आज वैसी ही स्थिति हमारी बनी हुई है, हमें मनुष्य भव के साथ धरती पर जन्म तो मिल गया है लेकिन हमें यह पता ही नहीं है कि हमें जाना कहां है और क्या करना है। हमारे पास समय कम है, कितना बाकी है यह तो किसी को भी नहीं पता लेकिन जितना भी बाकी है, उसमें हमें अच्छे भव में बदल लेना चाहिए। इस बचे हुए समय में दूसरे को देखना बंद करना होगा, उसने करोड़ों कमाए, उसने करोड़ों गंवा दिए, इन सब बातों को छोड़ना होगा नहीं तो कर्मसत्ता हमें नहीं छोड़ेगी। 

एक भिखारी का प्रसंग बताते हुए मुनिश्री ने बताया कि एक भिखारी सड़क पर लोगों से मांग रहा था। एक व्यक्ति ने उसे देखा और कहा कि मेरे साथ चलो मैं तुम्हें सब दुंगा और तुम उसमें से चयन करना कि तुम्हें क्या चाहिए। वह व्यक्ति उसे अपने साथ एक महल में लेकर गया जहां उसे अच्छे कपड़े, स्वादिष्ट भोजन, रत्नों के ढेर, संगीत और नाटिका का मंच दिखाया और उसे पांच मिनट का वक्त देकर किसी एक को चुनने को कहा। यह सब देखकर उसकी आंखें चौंधा गई और देखते ही देखते दो मिनट निकल भी गए। इस पर मुनिश्री ने श्रावकों से पूछा कि आप उस भिखारी की जगह रहते तो क्या चुनते? श्रावकों के बीच से आवाज आई कि उसे रत्नों का ढेर चुनना चाहिए क्योंकि अगर उसके पास रत्न होंगे तो वह बाकी चीजों का लाभ बाद में भी ले सकता है। इस उदाहरण के माध्यम से मुनिश्री ने बताया कि आज आपको भी उस रत्न के ढेर के समान मनुष्य भव मिला है और इस दुनिया की चकाचौंध को देखते हुए आपने भी अपने आधे समय को खो दिया है। अगर हम बाकी बचे हुए समय में कुछ नहीं कर पाए तो कर्मसत्ता हमें निगोद में डाल देगी। 

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