रायपुर। श्री संभवनाथ जैन मंदिर विवेकानंद नगर में जारी आत्मोल्लास चातुर्मास 2024 की प्रवचनमाला में रविवार को तपस्वी मुनिश्री प्रियदर्शी विजयजी म.सा. ने विशेष प्रवचन दिया। मुनिश्री ने परमात्मा महावीर स्वामी की बताई हुई अहिंसा की संस्कृति को कौन बचाएगा विषय पर विश्व में चल रहे हिंसाचार के बारे में आगे बताते हुए कहा कि शाकाहारी और मांसाहारी प्राणियों की शरीर की संरचना अलग-अलग होती है। शाकाहारी प्राणियों को HERBIVORES और मांसाहारी प्राणियों को CARNIVORES ग्रुप में डाला गया है। दोनों के बीच में जो भेद हैं उसमें HERBIVORES के आगे के दांत जिसे canines teeth कहा जाता है, चपटे होते हैं ,उनमें intestine की लंबाई कम होती है ,नाखून भी चपटे होते हैं आहार पचाने के लिए शरीर में रहा हुआ HCL कम मात्रा में पाया जाता है। दूध अथवा पानी पीना हो तो होठ से पीते हैं, जन्म के समय बच्चों की आंख खुली रहती है उसके विपरीत CARNIVORES प्राणी के दांत नुकीले होते हैं, intestine की लंबाई ज्यादा होती है,नाखून तीक्ष्ण होते हैं,आहार पचाने के लिए शरीर में रहा हुआ HCL ज्यादा मात्रा में पाया जाता हैं, जन्म के समय आंखें बंद होती हैं, पानी या दूध पीने के लिए जीभ का उपयोग करते हैं लेकिन आज के बुद्धिजीवियों ने मनुष्य को omnivores नाम के कल्पित, ऐसे तीसरे विभाग में डाला है जिसमें मनुष्य को शाकाहारी और मांसाहारी दोनों में गिना गया है परंतु उपरोक्त लक्षण देखते ही पता चलता है कि मनुष्य के शरीर की संरचना मात्र शाकाहारी आहार के अनुसार ही है।
साथ ही प्राणियों में सबसे ताकतवर माने जाने वाला हाथी शाकाहारी होता है। पावर की यूनिट भी हॉर्स पावर के नाम से जानी जाती है। यह सारे शाकाहारी प्राणी होते हैं।
एक जैन साधु जो आजीवन पदयात्रा करते हैं वह हमेशा शुद्ध शाकाहारी भोजन ही लेते हैं, दुनिया का बड़े से बड़ा दौड़वीर भी उनके समकक्ष नहीं आ सकता।
जैन इतिहास में आता है कि आज से 400 वर्ष पूर्व हुए आचार्य जगद्गुरु हीर सूरीश्वर जी महाराज ,जिन्होंने अपने संयम के बल से अकबर जैसे क्रूर बादशाह के जीवन से भी काफी हद तक मांसाहार का त्याग करवाया था। मुगल सम्राटों के इतिहास में अकबर जैसा क्रुर और निर्दयी बादशाह हुआ नहीं था,जिसने अपने राज्य के डाबर नाम की झील के आसपास 10 स्क्वायर मील जितने क्षेत्र में ठसाठस जानवरों को भर रखे थे और जब उसकी इच्छा होती थी अपने सैनिकों के साथ जाकर अंधाधुंध तीर चला कर शिकार किया करता था। आगरा से फतेहपुर सीकरी तक पूरे रास्ते में उसने सिंग वाले हिरण के मस्तक के तोरण बांध रखे थे,जिससे उसकी क्रुरता का परिचय मिलता है। ऐसे सम्राट को भी एक जैन आचार्यश्री जगद्गुरु हीर सूरीश्वर जी महाराजा ने उपदेश देकर हिंसा बंद करवाई थी तो क्या आज हम सामुदायिक या व्यक्तिगत स्तर पर जाकर हिंसा बंद नहीं करवा सकते और जिस दिन यह हिंसा समाज से बंद होगी, तभी समाज वास्तविक रूप से विकास के मार्ग पर चलेगा।
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