रायपुर। संभवनाथ जैन मंदिर विवेकानंद नगर रायपुर में आत्मोल्लास चातुर्मास की प्रवचनमाला जारी है। 9 अक्टूबर से 17 अक्टूबर तक शाश्वत नवपद ओली जी की आराधना तप और त्याग के साथ की जा रही है। गुरुवार को तपस्वी मुनिश्री प्रियदर्शी विजयजी म.सा. ने धर्मसभा में कहा की जीवन के अंदर में दूसरों की मदद करने का अवसर आए तो कभी नहीं चुके,ऐसी अरिहंत पद की आराधना है। वहीं सिद्ध पद की आराधना के बारे में मुनिश्री ने कहा कि सिद्ध पद के लिए गुणों को आत्मसात करें।
पुण्यबंध और कर्म निर्झरा के अलावा गुणों की प्राप्ति का लक्ष्य होना चाहिए। मुनिश्री ने कहा कि किसी भी परिस्थिति के अंदर तत्काल एक्शन नहीं लेना चाहिए और रिएक्शन तुरंत नहीं देना चाहिए। यदि देना भी पड़े तो उस समय सिद्ध भगवंतों को याद करना चाहिए। संपूर्ण ज्ञान होने के बाद भी सिद्ध भगवंतों के जीवन में क्रिया और प्रतिक्रिया नहीं है और अनंत सुख के स्वामी है। यह सुख आत्मा में से ही प्रकट हुआ है। सुख को जनरेट नहीं करना है, सुख को आविष्कृत करना है। हम सुख को जनरेट करने की कोशिश करते हैं इसलिए ज्यादा से ज्यादा दुखी होते हैं।
एक सुख प्राप्त होने के बाद उससे ज्यादा सुख प्राप्त करने जीव को लालसा रहती है। जीव उससे ज्यादा सुख प्राप्त करने के लिए और ज्यादा सुख की प्रवृत्ति करता है लेकिन सुख जो अंदर पड़ा है उसको जिस दिन अविष्कृत करेंगे वही वास्तविक सुख है,जो आत्मा का सुख है। समय, संयोग और व्यक्ति के द्वारा जो सुख मिलता है वह सुख समय, संयोग और व्यक्ति के जाने से दुख के रूप में बदल जाएगा,इसलिए सिद्ध भगवंतों की आराधना करनी चाहिए। मुनिश्री ने कहा कि सिद्ध भगवंतों में अनंत दर्शन गुण होते हैं। वे सब कुछ देखते हैं लेकिन फिर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं देते। राग ,द्वेष मोहनी कर्म के क्षय से उत्पन्न गुण के कारण से राग ,द्वेष की परिणति उनके जीवन में नहीं है। राग द्वेष की परिणति संसारी जीव की होती है।
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