कोण्डागांव। बस्तर की जनजातीय संस्कृति के विभिन्न कलाओं के प्रदर्शन के साथ तीन दिवसीय विकासखण्ड स्तरीय बस्तर पण्डुम का आज भव्य समापन हुआ। कोण्डागांव के स्थानीय ऑडीटोरियम में आयोजित बस्तर पण्डुम के तीसरे और अंतिम दिन जनजातीय नाट्य, शिल्प कला एवं चित्रकला के प्रदर्शन और जनजातीय पेय पदार्थों एवं व्यंजनों की प्रदर्शनी लगाई गई। कार्यक्रम में समाज प्रमुखजनों एवं प्रबुद्धजनों ने निर्णायक के रूप में अपनी भूमिका निभाई।
बस्तर की समृद्ध जनजातीय संस्कृति में खान-पान का विशेष स्थान है। यहां के पारंपरिक व्यंजन और पेय पदार्थ न केवल स्वादिष्ट होते हैं, बल्कि पोषण से भरपूर और स्वास्थ्यवर्धक भी माने जाते हैं। छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र के व्यंजन पूरे देश में अपनी विशेषता के लिए प्रसिद्ध है। बस्तर पंडुम के तीसरे दिन आदिवासी युवक-युवतियों ने बस्तर के पारंपरिक व्यंजनों का प्रदर्शन किया। इनमें चापड़ा चटनी और मड़िया पेज जैसे व्यंजनों ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया। प्रतिभागियों ने इन सभी व्यंजनों के बनाने की प्रक्रिया और इसके लाभ के बारे में जानकारी दी गई। चापड़ा चटनी के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि इसे लाल चींटियों से बनाया जाता है, जो अपनी अनोखी स्वाद और औषधीय गुणों के लिए जानी जाती है। यह पोषक तत्वों से भरपूर होती है, जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में सहायक मानी जाती है। वहीं मड़िया पेज, जो रागी (मड़िया) से तैयार किया जाता है, गर्मी के मौसम में ठंडक पहुंचाने वाला पेय है और ऊर्जा का बेहतरीन स्रोत माना जाता है। इसके अलावा कुमड़ा बड़ी, बोहाढ़ भाजी, जीरा भाजी, हरवा, उड़द, पिता कांदा, कोलयारी भाजी, जिमी कांदा, डांग कांदा सल्फी एवं अन्य वेंजनों के बारे में प्रदर्शनी किया गया। बस्तर के व्यंजन यहां की पारंपरिक जीवनशैली और प्रकृति से जुड़ा हुआ है। यहां के खान-पान न केवल स्थानीय लोगों के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए एक धरोहर है, जिसे सहेजने की पहल छत्तीसगढ़ शासन द्वारा बस्तर पंडुम के आयोजन के माध्यम से किया जा रहा है।
बस्तर की अद्वितीय शिल्पकला में जनजातीय संस्कृति की गहरी छाप दिखाई देती है। इसे प्रदर्शित करते हुए आयोजन के जनजातीय शिल्प एवं चित्रकला वर्ग में प्रतिभागी कलाकारों ने बेलमेटल, भित्ती चित्रकला, मिट्टी कला, पत्थर शिल्प और अन्य पारंपरिक कलाओं के माध्यम से बस्तर की समृद्ध लोक संस्कृति को जीवंत रूप में प्रस्तुत किया। ये शिल्पकला न केवल बस्तर क्षेत्र की पारंपरिक विरासत के साथ सांस्कृतिक पहचान भी है। इसके अलावा लोक कलाकारों के समूह द्वारा सामाजिक संदेश के साथ जनजातीय नाट्य की प्रस्तुति दी गई। कार्यक्रम में स्थानीय जनप्रतिनिधियों सहित समाज प्रमुख, प्रबुद्धजनों सहित बड़ी संख्या में दर्शक उपस्थित होकर लोक कलाकारों का उत्साहवर्धन किया।
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